भारत में हर चुनाव के दौरान इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) को लेकर विवाद उठता है। विपक्षी दलों का आरोप होता है कि चुनाव में धोखाधड़ी हो रही है, और इस आरोप के आधार पर वे पेपर बैलेट को फिर से लागू करने की मांग करते हैं।
लेकिन हाल ही में, चुनाव आयुक्त ने इस विवाद को खत्म करते हुए पेपर बैलेट पर वापसी से इंकार कर दिया है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि ईवीएम सबसे सुरक्षित और विश्वसनीय तरीका है, और इसका उपयोग जारी रहेगा।
ईवीएम का महत्व और इतिहास
ईवीएम का उपयोग भारत में 1990 के दशक के अंत से हुआ। इसके पहले, चुनावों में पेपर बैलट का उपयोग किया जाता था, जो काफी समय और संसाधन लेते थे।ईवीएम ने न केवल चुनाव प्रक्रिया को तेज किया, बल्कि इसमें मानव हस्तक्षेप की संभावना को भी कम किया। इसके बाद से, ईवीएम को लेकर हर चुनाव में कुछ ना कुछ विवाद उभरता रहा, लेकिन चुनाव आयोग ने हमेशा इसका बचाव किया है।
विवाद की शुरुआत और विपक्ष की आलोचना
ईवीएम विवाद की शुरुआत 2009 में हुई जब लोकसभा चुनावों के परिणामों के बाद कई विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि वोटिंग मशीनों में छेड़छाड़ की गई है। इसके बाद कई राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे को संसद में उठाया और चुनाव आयोग से पेपर बैलट की वापसी की मांग की।हालांकि, चुनाव आयोग ने बार-बार यह कहा कि ईवीएम के साथ कोई छेड़छाड़ संभव नहीं है, क्योंकि इन मशीनों को अत्यधिक सुरक्षा उपायों के तहत डिजाइन किया गया है।
चुनाव आयुक्त का बयान
चुनाव आयुक्त ने हाल ही में एक प्रेस कांफ्रेंस में ईवीएम पर उठाए जा रहे सवालों पर अपनी राय दी। उन्होंने कहा, "हमने हर पहलू पर गहन जांच की है और यह स्पष्ट हैकि ईवीएम पूरी तरह से सुरक्षित और पारदर्शी हैं। हम पेपर बैलट की वापसी के पक्ष में नहीं हैं।" उनका मानना था कि ईवीएम के उपयोग से चुनाव प्रक्रिया में गति आई है और चुनावों की निष्पक्षता में भी कोई कमी नहीं आई है।
उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव आयोग ने हाल ही में एक नई तकनीक का परीक्षण किया है, जो ईवीएम की सुरक्षा को और बढ़ाता है।
इसके अलावा, चुनाव आयोग ने ईवीएम की विश्वसनीयता को साबित करने के लिए कई बार वेब कास्टिंग और वीवीपैट (Voter Verifiable Paper Audit Trail) का प्रयोग किया है, जिससे वोटर्स को यह विश्वास हो कि उनका वोट सही जगह पर गया है।
पेपर बैलट की वापसी क्यों नहीं?
चुनाव आयुक्त के अनुसार, पेपर बैलट को वापस लाने से चुनावी प्रक्रिया और अधिक जटिल हो जाएगी। पहले के दिनों में पेपर बैलट की गिनती में कई दिन लग जाते थे, और इस प्रक्रिया में कई तरह की गलतियों का सामना करना पड़ता था।इसके अलावा, पेपर बैलट की सुरक्षा में भी कई समस्याएं होती हैं, जैसे कि बैलट बॉक्स की चोरी या वोटिंग के दौरान कागज का गलती से फेंकना।
उन्होंने कहा कि ईवीएम ने चुनावों की निष्पक्षता और गति में सुधार किया है, और इससे मतदान के परिणाम जल्द प्राप्त होते हैं, जिससे लोकतंत्र में विश्वास मजबूत होता है।
आलोचनाओं का सामना करने के बावजूद ईवीएम का पक्ष
हालांकि, विपक्षी दलों का आरोप है कि ईवीएम में धोखाधड़ी हो सकती है, लेकिन चुनाव आयोग ने इसके खिलाफ कई कदम उठाए हैं। सबसे बड़ा कदम था वीवीपैट की शुरुआत, जिससे वोटर को यह सुनिश्चित करने का अवसर मिलता है कि उनका वोट सही उम्मीदवार को मिला है।इसके अलावा, चुनाव आयोग ने यह सुनिश्चित किया है कि हर मतदान केंद्र पर सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं, जिससे चुनाव प्रक्रिया की निगरानी की जा सके।
इसके अलावा, चुनाव आयोग ने इस विषय पर कई बार विशेषज्ञों से चर्चा की है, और उनकी रिपोर्ट के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है कि ईवीएम के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं हो सकती।
विपक्ष का क्या कहना है?
विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग के बयान को सिरे से नकारते हुए कहा कि अगर ईवीएम पूरी तरह से सुरक्षित हैं, तो फिर चुनाव आयोग को एक स्वतंत्र एजेंसी से इसकी सुरक्षा का परीक्षण करवाने में क्या परेशानी होनी चाहिए? कई दलों ने इस मामले में उच्चतम न्यायालय से भी हस्तक्षेप की मांग की है।लोकतंत्र और चुनाव प्रक्रिया पर असर
यह विवाद केवल तकनीकी मुद्दा नहीं है, बल्कि यह भारत के लोकतंत्र की मज़बूती से भी जुड़ा हुआ है। चुनावों के दौरान जब जनता को भरोसा नहीं होता कि उनका वोट सही जगह जा रहा है, तो लोकतंत्र की नींव कमजोर पड़ती है। यही कारण है कि चुनाव आयोग लगातार ईवीएम के पक्ष में अपनी बातें रखता रहा है।समाप्ति
ईवीएम विवाद के अंत में चुनाव आयुक्त ने पेपर बैलट पर वापसी से इनकार किया है। उनका मानना है कि ईवीएम ने चुनाव प्रक्रिया को न केवल अधिक पारदर्शी और तेज बनाया है, बल्कि इसके द्वारा लोकतंत्र की सुरक्षा भी सुनिश्चित हुई है।अब यह देखना होगा कि भविष्य में क्या कोई नया तकनीकी बदलाव होता है या फिर चुनाव आयोग इसी प्रणाली को बनाए रखता है।
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